कर्मकाण्ड भक्ति सागर

बुधवार, 30 मई 2018

आप भी चाहते हैं शीघ्र विवाह तो लिंक अवश्य खोलें..

पण्डाजी जितेंन्द्र अवस्थी ने बताया कि भगवान  शिव अपने भक्त की शुभ इच्छा शीघ्र पूर्ण करते हैं। उनके व्रत-पूजन से गृहस्थ जीवन में सुख-शांति रहती है तो अविवाहित जातकों को सुयोग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। जानिए विवाह में आ रही बाधा के निवारण के लिए शिव को कैसे प्रसन्न करना चाहिए।
रविवार या सोमवार को युवक-युवती को पीले वस्त्र धारण कर शिवालय में शिव का ध्यान करना चाहिए और इस श्लोक का कम से कम दो माह तक पाठ करना चाहिए। सोमवार को अखंड घी का दीपक जलाना खासा लाभ देता है।
वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नम: श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नम: नमो कालाय नम: कलविकरणाय नम: बल विकरणाय नमो  
अध्ययन में सफलता के लिएसोमवार या रविवार को पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख में बैठकर इस मंत्र का हर सोमवार 21 बार पाठ करें।
ऊं  तत् पुरुषाय विद्महे महादेवाव धीमहि तन्नों रुद्र: प्रचोदयात्।  
कालिदास ने भगवान शिव की अष्ट मूर्ति शिव आराधना का उल्लेख किया है। इसलिए  शिव पूजा के साथ यथा संभव कलश पूजन, अग्निदेव या हवन, पृथ्वी के रूप में पूजन में ध्यान व जप, प्राणायाम, नासिका से ऊं  नम: शिवाय के जप या शिव महिम्न स्तोत्रम्  के पाठ करें। 
स्तुति के अलावा रुद्रपाठ खासा लाभ देता है। कहा जाता है कि भगवान शंकर बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देव हैं।  

इन उपायों से होगी शादी / विवाह ( सामान्य उपाय) —
1. कन्या के विवाह में हो रहे विलम्ब को दूर करने के लिए पिता को चाहिए कि विवाह वार्ता के समय कन्या को कोई नया वस्त्र अवश्य पहनाना चाहिए।
2. यदि विवाह प्रस्ताव नहीं प्राप्त हो रहे तो पिता को चाहिए कि कन्या को गुरूवार को पीला वस्त्र एवं शुक्रवार को सफेद वस्त्र पहनावें। ये वस्त्र नये हो शीघ्र फल मिलेगा। यदि 4 सप्ताह तक यह प्रयोग किया जावे तो अच्छे विवाह प्रस्ताव प्राप्त होने लग जावेगें। अतः किसी वस्त्र को दोबारा नहीं पहनाना चाहिए।
3. यदि कन्या के विवाह प्रस्ताव सगाई तय होने के अन्तिम चरण में पहुँचकर टूट जाते हैं तो माता-पिता को यह प्रयास करना चाहिए कि जिस कक्ष में बैठकर सगाई/शादी के सम्बन्ध में वार्ता की जावे उसमें वह अपने जूते चप्पल उतार कर प्रवेश करें। जूते चप्पल कक्ष से बाहर द्वार के बायीं ओर और उतारे।
4. जिस समय भी कन्या के परिजन वर पक्ष के घर प्रवेश करते समय कन्या के माता पिता अथवा अन्य व्यक्ति वह पैर सबसे पहले घर में रखना चाहिए जिस नासिका में (दायीं अथवा बायीं ओर का) स्वर प्रवाहित हो रहा हो।
5. जिस समय भी कन्या के परिजन वर पक्ष से विवाह वार्ता के लिए जावे उस समय कन्या अपने बालों को खोले रखे तथा उनके लौटकर आ जाने के समय तक खोले रखें, न तो जूड़ा और न ही चोटीं बनायें। कन्या को चाहिए कि अपने परिजनों को विवाह वार्ता के लिए प्रस्थान करते समय प्रसन्नता पूर्वक उन्हें मिष्ठान खिलाकर विदा करें।
6. विवाह योग्य युवक-युवतियों को जब भी किसी विवाह उत्सव में भाग लेने का अवसर मिले तो लड़के या कन्या को लगाई जाने वाली मेंहदी में कुछ मेंहदीं लेकर अपने हाथों पर लगाना चाहिए।
7. शाीघ्र विवाह के लिए कन्या को 16 सोमवार का व्रत करना चाहिए तथा प्रत्येक सोमवार को शिव मन्दिर में जाकर जलाभिषेक करें, माँ पार्वती का श्रृंगार करें, शिव पार्वती के मध्य गठजोड़ बाँधे तथा शीघ्र विवाह के लिए प्रार्थना करें। विवाह प्रस्ताव आने प्रारम्भ हो जावेगें।
8. वर की कामना पूर्ति हेतु कन्या को निम्न मंत्र का शिव-गौरी पूजनकर एक माला का जप करना चाहिए।
’’ ऊँ नमः मनोभिलाषितं वरं देहि वरं ही ऊँ गोरा पार्वती देव्यै नमः ’’
9. रामचरित मानस के बालकाण्ड में शिव पार्वती विवाह प्रकरण का नित्य पाठ करने से कन्या का विवाह शीघ्र होता देखा गया हैं।
10. विवाह अभिलाषी लड़का या लड़की शुक्रवार के दिन भगवान शंकर पर जलाभिषेक करें तथा शिव लिंग पर ’’ ऊँ नमः शिवाय ’’ बोलते हुए 108 पुष्प चढ़ावें शीघ्र विवाह की प्रार्थना करें साथ ही शंकर जी पर 21 बीलपत्र चढ़ावें ऐसा कम से कम 7 शुक्रवार करें, शीघ्र विवाह/शादी के प्रस्ताव आने प्रारम्भ हो जायेगें।
11. गुरूवार के दिन विष्णु लक्ष्मी मन्दिर में कंलगी जो सेहरे के ऊपर लगी रहती हैं चढ़ावें, साथ ही बेसन के 5 लड्डू चढावें, भगवान से शीघ्र विवाह की प्रार्थना करें विवाह का वातावरण बनना प्रारम्भ हो जावेगा ।
यह उपरोक्त बड़े सरल टोटके हैं इन्हें कोई भी विवाहकांक्षी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करता हैं तो सफलता मिलती हैं । लड़की की शादी शीघ्र होती हैं ।
यदि उपरोक्त टोटके करने के पश्चात भी यदि विवाह सम्पन्न नहीं हो पाता हैं । कुण्डली में विवाह बाधा योग हो तो निम्न तांत्रिक प्रयोग करना चाहिए ।
कामदेव रति यंत्र:-
विवाहकांक्षी लड़का या लड़की कामदेव रति यंत्र प्राप्त करें । नित्य प्रातःकाल उठकर स्नानकर सूर्य को 7 बार अर्ध्य देवे और फिर आसन बिछा कर बैठे । सामने किसी बाजोंट पर स्वच्छ नया वस्त्र बिछाकर कामदेव रति यत्र को स्थापित करें । यंत्र का पंचामोउपचार से पूजन करें । हकीक माल से निम्न मंत्र का सवालाख जप करें । यदि श्रद्धा और विश्वास के साथ जप किया जावे तो जप समाप्ति पर अच्छे प्रस्ताव आने प्रारम्भ हो जाते हैं ।
‘‘ ऊँ कामदेवाय विदमहे रति प्रियायै धीमहि तन्नो अॅनंग प्रयोदयात ‘‘।
विवाह बाधानिवारण यंत्र:-
जिनके पुत्र-पुत्रियों की उम्र विवाह योग्य हो, विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो । सगाई टूट जाती हो अथवा कुण्डली में विवाह बाधा योग हो तो उन्हे निम्न तांन्त्रिक प्रयोग सम्पन्न करना चाहिए, शीघ्र विवाह होता हैं । यह प्रयोग किसी मंगलवार को आरम्भ किया जा सकता हैं । इस प्रयोग को लड़का या लड़की स्वयं करें या माता-पिता या किसी पण्डित से संकल्प लेकर करवाया जा सकता हैं ।
इस प्रयोग के निम्न उपकरण जो प्राण प्रतिष्ठित हो वांछनीय हैं ।
1. सौभाग्य माला 2. विवाह बाधा निवारण यंत्र
प्रातः स्नान करने के पश्चात यंत्र को बाजोट पर वस्त्र बिछाकर स्थापित करें । यंत्र को प्रथम दुध से फिर जल से स्नान करावे तथा स्वच्छ वस्त्र से यंत्र को पोछकर, केसर से यंत्र को तिलक करें, अक्षत, पुष्प यंत्र को साथ में अर्पित करें ।
गुरू पूजन करें तथा गुरू से अनुष्ठान सफल के सम्बन्ध में प्रार्थना अवश्य करें । दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर संकल्प बोले (यह साधना विवाह बाधा निवारणार्थ शीघ्र विवाह हेतु सम्पन्न कर रहा हूॅ ) निम्न मंत्र की सौभाग्य माला से 11 मालाएं 21 दिन तक जन करें, क्रम टूटना नहीं चाहिए । 21 दिन के पश्चात यंत्र और माला को बहते जल में या नदी में प्रवाहित कर दें । विवाह बाधाएं समाप्त होगी ।
‘‘ ऊँ हो कामदेवाय रत्यै सर्व दोष निवारणाय फटं् ‘‘
दर्गासप्तशती का पाठ:- पुत्र की शादी नहीं हो रही हो, शादी में रूकावटें आ रही हो तो दुर्गासप्तशती का पाठ निम्न मंत्र का सम्पुट लगाकर करें ।
‘‘ पत्नि मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीय ।
तारिणिं दुर्गासंसार सागरस्य कुलोद्भणामं ।।
यह पाठ स्वयं विवाहकांशी ही करें तो श्रेष्ठ रहेगा, विवाह प्रस्ताव आने प्रारम्भ हो जावेगें । विवाह योग्य कन्या को भवन के वायव्य कोण वाले कक्ष में सोना चाहिए इससे कन्या के विवाह में आने वाली रूकावटें स्वतः दूर होती हैं तथा कन्या का विवाह जल्दी होने की सम्भावना बनती हैं ।
शादी विवाह के आयोजन में विघ्न न पडने देने के लिये अचूक टोटका—
शादी वाले दिन से एक दिन पहले एक ईंट के ऊपर कोयले से ष्बाधायेंष् लिखकर ईंट को उल्टा करके किसी सुरक्षित स्थान पर रख दीजिये,और शादी के बाद उस ईंट को उठाकर किसी पानी वाले स्थान पर डाल कर ऊपर से कुछ खाने का सामान डाल दीजिये,शादी विवाह के समय में बाधायें नहीं आयेंगी।
प्रेम विवाह में सफल होने के लिए उपाय —
यदि आपको प्रेम विवाह में अडचने आ रही हैं तो :
शुक्ल पक्ष के गुरूवार से शुरू करके विष्णु और लक्ष्मी मां की मूर्ती या फोटो के आगे “ऊं लक्ष्मी नारायणाय नमः” मंत्र का रोज तीन माला जाप स्फटिक माला पर करें ! इसे शुक्ल पक्ष के गुरूवार से ही शुरू करें ! तीन महीने तक हर गुरूवार को मंदिर में प्रशाद चढांए और विवाह की सफलता के लिए प्रार्थना करें !
विवाह बाधा दूर करने के लिए उपाय—
कन्या को चाहिए कि वह बृहस्पतिवार को व्रत रखे और बृहस्पति की मंत्र के साथ पूजा करे। इसके अतिरिक्त पुखराज या सुनैला धारण करे। छोटे बच्चे को बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र दान करे। लड़के को चाहिए कि वह हीरा या अमेरिकन जर्कन धारण करे और छोटी बच्ची को शुक्रवार को श्वेत वस्त्र दान करे।
शादी करने का अनुभूत उपाय—-
पुरुषों को विभिन्न रंगों से स्त्रियों की तस्वीरें और महिलाओं को लाल रंग से पुरुषों की तस्वीर सफेद कागज पर रोजाना तीन महिने तक एक एक बनानी चाहिये।
अगर लड़की की उम्र निकली जा रही है और सुयोग्य लड़का नहीं मिल रहा या रिश्ता बनता है फिर टूट जाता है। या फिर शादी में अनावश्यक देरी हो रही हो तो कुछ छोटे-छोटे सिद्ध टोटकों से इस दोष को दूर किया जा सकता है। ये टोटके अगर पूरे मन से विश्वास करके अपनाए जाएं तो इनका फल बहुत ही कम समय में मिल जाता है। जानिए क्या हैं ये टोटके करें :-
1. रविवार को पीले रंग के कपड़े में सात सुपारी, हल्दी की सात गांठें, गुड़ की सात डलियां, सात पीले फूल, चने की दाल (करीब 70 ग्राम), एक पीला कपड़ा (70 सेमी), सात पीले सिक्के और एक पंद्रह का यंत्र माता पार्वती का पूजन करके चालीस दिन तक घर में रखें। विवाह के निमित्त मनोकामना करें। इन चालीस दिनों के भीतर ही विवाह के आसार बनने लगेंगे।
2. लड़की को गुरुवार का व्रत करना चाहिए। उस दिन कोई पीली वस्तु का दान करे। दिन में न सोए, पूरे नियम संयम से रहे।
3. सावन के महीने में शिवजी को रोजाना बिल्व पत्र चढ़ाए। बिल्व पत्र की संख्या 108 हो तो सबसे अच्छा परिणाम मिलता है।
4. शिवजी का पूजन कर निर्माल्य का तिलक लगाए तो भी जल्दी विवाह के योग बनते हैं।
विवाह के उपाय (Remedies and Upay to avoide late marriage)—
समय पर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की इच्छा के कारण माता-पिता व भावी वर-वधू भी चाहते है कि अनुकुल समय पर ही विवाह हो जायें. कुण्डली में विवाह विलम्ब से होने के योग होने पर विवाह की बात बार-बार प्रयास करने पर भी कहीं बनती नहीं है. इस प्रकार की स्थिति होने पर शीघ्र विवाह के उपाय करने हितकारी रहते है. उपाय करने से शीघ्र विवाह के मार्ग बनते है. तथा विवाह के मार्ग की बाधाएं दूर होती है.
उपाय करते समय ध्यान में रखने योग्य बातें (Precautions while doing Jyotish remedies)—
’ 1. किसी भी उपाय को करते समय, व्यक्ति के मन में यही विचार होना चाहिए, कि वह जो भी उपाय कर रहा है, वह ईश्वरीय कृ्पा से अवश्य ही शुभ फल देगा.
’ 2. सभी उपाय पूर्णतरू सात्विक है तथा इनसे किसी के अहित करने का विचार नहीं है.
’ 3. उपाय करते समय उपाय पर होने वाले व्ययों को लेकर चिन्तित नहीं होना चाहिए.
’ 4. उपाय से संबन्धित गोपनीयता रखना हितकारी होता है.
’ 5. यह मान कर चलना चाहिए, कि श्रद्धा व विश्वास से सभी कामनाएं पूर्ण होती है.
आईये शीघ्र विवाह के उपायों को समझने का प्रयास करें (Remedies for a late marriage)
1. हल्दी के प्रयोग से उपाय:-
विवाह योग लोगों को शीघ्र विवाह के लिये प्रत्येक गुरुवार को नहाने वाले पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर स्नान करना चाहिए. भोजन में केसर का सेवन करने से विवाह शीघ्र होने की संभावनाएं बनती है.
2. पीला वस्त्र धारण करना:-
ऎसे व्यक्ति को सदैव शरीर पर कोई भी एक पीला वस्त्र धारण करके रखना चाहिए.
3. वृ्द्धो का सम्मान करना:-
उपाय करने वाले व्यक्ति को कभी भी अपने से बडों व वृ्द्धों का अपमान नहीं करना चाहिए.
4. गाय को रोटी देना:-
जिन व्यक्तियों को शीघ्र विवाह की कामना हों उन्हें गुरुवार को गाय को दो आटे के पेडे पर थोडी हल्दी लगाकर खिलाना चाहिए. तथा इसके साथ ही थोडा सा गुड व चने की पीली दाल का भोग गाय को लगाना शुभ होता है.
इसके अलावा शीघ्र विवाह के लिये एक प्रयोग भी किया जा सकता है. यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को किया जाता है. इस प्रयोग में गुरुवार की शाम को पांच प्रकार की मिठाई, हरी ईलायची का जोडा तथा शुद्ध घी के दीपक के साथ जल अर्पित करना चाहिये. यह प्रयोग लगातार तीन गुरुवार को करना चाहिए.
6. केले के वृ्क्ष की पूजा:-
गुरुवार को केले के वृ्क्ष के सामने गुरु के 108 नामों का उच्चारण करने के साथ शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए. अथा जल भी अर्पित करना चाहिए.
7. सूखे नारियल से उपाय:-
एक अन्य उपाय के रुप में सोमवार की रात्रि के 12 बजे के बाद कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता, इस उपाय के लिये जल भी ग्रहण नहीं किया जाता. इस उपाय को करने के लिये अगले दिन मंगलवार को प्रातरू सूर्योदय काल में एक सूखा नारियल लें, सूखे नारियल में चाकू की सहायता से एक इंच लम्बा छेद किया जाता है. अब इस छेद में 300 ग्राम बूरा (चीनी पाऊडर) तथा 11 रुपये का पंचमेवा मिलाकर नारियल को भर दिया जाता है.
यह कार्य करने के बाद इस नारियल को पीपल के पेड के नीचे गड्डा करके दबा देना. इसके बाद गड्डे को मिट्टी से भर देना है. तथा कोई पत्थर भी उसके ऊपर रख देना चाहिए.
यह क्रिया लगातार 7 मंगलवार करने से व्यक्ति को लाभ प्राप्त होता है. यह ध्यान रखना है कि सोमवार की रात 12 बजे के बाद कुछ भी ग्रहण नहीं करना है.
नोट:-कोई भी उपाय करने से पहले हमसे संपर्क करें  
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सम्पर्क सूत्र :- पण्डाजी जितेंन्द्र अवस्थी
   9993834961

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पण्डाजी जितेंन्द्र अवस्थी ने  बताया


संतान प्राप्ति के लिए अचूक प्रयोग वंशाख्य कवच—-

सन्तान-प्राप्ति के लिए अचूक प्रयोग वंशाख्य कवच—- 
अरुण उवाच-भगवन्, देव-देवेश!
कृपया त्वं जगत्-प्रभो! 
वंशाख्य-कवचं ब्रूहि, मह्यं शिष्याम तेऽनघ! 
यस्य प्रभावाद् देवेश! 
वंशच्छेदो न जायते। 
श्रीसूर्य उवाच- श्रृणु वत्स!
प्रवक्ष्यामि, वंशाख्य-कवचं शुभं।
सन्तान-वृद्धिर्यात् पाठात्, गर्भ-रक्षा सदा नृणां।।
वन्ध्याऽपि लभते पुत्रं, काक-वन्ध्या सुतैर्युता।
मृत-गर्भा स-वत्सा स्यात्, स्रवद्-गर्भा स्थिर-प्रजा।। 
अपुष्पा पुष्पिणी यस्य, धारणं च सुख-प्रसुः।
कन्या प्रजा-पुत्रिणी स्यात्, येन स्तोत्र-प्रभावतः।
भूत-प्रेतादि या बाधा, बाधा शत्रु-कृताश्च या।।
भस्मी-भवन्ति सर्वास्ताः, कवचस्य प्रभावतः।
सर्वे रोगाः विनश्यन्ति, सर्वे बाधा ग्रहाश्च ये।।
।।मूल-पाठ।। विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवंशाख्य-कवच-माला-मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः। श्रीसूर्यो देवता। वंश-वृद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास- ब्रह्मा-ऋषये नमः शिरसि।
अनुष्टुप्-छन्दसे नमः मुखे।
श्रीसूर्य-देवतायै नमः हृदि। 
वंश-वृद्धयर्थे विनियोगाय नमः सर्वांगे। 
कवच- पूर्वे रक्षतु वाराही, चाग्नेयामम्बिका स्वयम्। 
दक्षिणे चण्डिका रक्षेत्, नैऋत्यां शव-वाहिनी।
पश्चिमे कौमुदा रक्षेत्, वायाव्यां च महेश्वरी। 
उत्तरे वैष्णवी रक्षेत्, ईशाने सिंह-वाहिनी।। 
ऊर्घ्वं तु शारदा रक्षेत्, अधो रक्षतु पार्वती। शाकम्भरी शिरो रक्षेत्, मुखं रक्षतु भैरवी।। 
कण्ठं रक्षतु चामुण्डा, हृदयं रक्षेच्छिवा। 
ईशानी च भुजौ रक्षेत्, कुक्षौ नाभिं च कालिका।। अपर्णा उदरं रक्षेत्, कटि-वस्ती शिव-प्रिया। 
उरु रक्षतु वाराही, जाया जानु-द्वयं तथा।। गुल्फौ पादौ सदा रक्षेत्, ब्रह्माणी परमेश्वरी। सर्वांगानि सदा रक्षेत्, दुर्गा दुर्गार्ति-नाशिनी।।
मन्त्र- “नमो देव्यै महा-देव्यै सततं नमः। 
पुत्रं सौख्यं देहि देहि, गर्भ रक्षा कुरुष्व नः।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं श्रीं ऐं ऐं ऐं महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती-रुपायै नव-कोटि-मुर्त्त्यै सुर्गा-देव्यै नमः। 
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं दुर्गे दुर्गार्ति-नाशिनी! सन्तान-सौख्यं देहि देहि, वन्ध्यत्वं मृत वत्सत्वं हा हा गर्भ रक्षां कुरु कुरु, सकलां बाधां कुलजां वासजां कृतामकृतां च नाशय नाशय, सर्व-गात्राणि रक्ष-रक्ष, गर्भ पोषय पोष्य, सर्वं रोगं शोषय, आशु दीर्घायु-पुत्रं देहि देहि स्वाहा।।”
प्रयोग विधिः- उक्त वंशाख्य कवच का प्रयोग सन्तान प्राप्ति के लिए किया जाता है।
प्रयोग के समय सन्तान की इच्छा रखनेवाली स्त्री का ‘ऋतु-काल′ होना चाहिए। 
‘ऋतु-स्नान’ के दिन ही रात्रि-काल में यह प्रयोग किया जाता है। 
सर्व-प्रथम ‘पीपल′ के सात पत्तों पर अनार की कलम द्वारा ‘रक्त-चन्दन’ से मन्त्र को लिखें। 
फिर दो छटाँक सरसों के तेल में उक्त सात पीपल के पत्तों को धो डाले। 
ऐसा करने से तेल में मन्त्र का प्रभाव चला जाएगा।
अब पुनः ‘पीपल′ के सात पत्तों पर अनार की कलम से मन्त्र को लिखें और उन पत्तों को स्नान करने के जल में डाल दें।
इसके बाद रात्रि-काल में वह स्त्री किसी निर्जन स्थान में जाकर उस सरसों के तेल को अपने पूरे शरीर में लगा ले।
शरीर का कोई भी बाघ तेल लगने से नहीं छूटना चाहिए।
तेल लगाने के बाद उसी स्थान में स्नान करने वाले जल से, जिसमें पीपल के पत्ते डाले गए हैं, स्नान कर लें। 
जो भी पुराने वस्त्र हों, उन्हें वहीं उसी स्थान में छोड़ दें।
वहाँ से कुछ दूर हट कर नये वस्त्र पहन लें।
तब घर वापस आ जाए। घर में पुरोहित, ब्राह्मण या कोई अभिभावक उक्त मन्त्र से १०८ बार कुश के द्वारा उस स्त्री को झाड़े।
झाड़ने के बाद उस स्त्री के शरीर की नाप के बराबर लाल धागा ले और उक्त मन्त्र को पढ़कर उस धागे में गाँठ बाँधकर उसकी कमर में बाँध दे। 
उस रात्रि पुरुष के साथ प्रसंग आवश्यक है।
———————————————————————————————— हमारे पुराने आयुर्वेद ग्रन्थों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। 
धर्म ग्रन्थों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है। यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहां माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
पांचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी। 
छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी। 
आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है। 
दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है। 
ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है। 
तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है। 
चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
पन्द्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है। 
सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है। —
—व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। 
महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपनी पुस्तक संस्कार विधि में स्पष्ट रूप से कर दी है।
प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि पूर्णरूप से की है।´ दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा ह
कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र
तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।
—–प्राचीन संस्कृत पुस्तक सर्वोदय में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
—-यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अण्डकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है। —
–चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रियाए पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है। ——
–कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है।
उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं।
अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। 
सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं। अतः समझदार व्यक्ति को इन दिनों का ध्यान करके ही गर्भाधान करना चाहिए। ——-जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है। ——–विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है। ——————————— संतान प्राप्ति के उपाय—— जिस इस्त्री को गर्भ धारण न होता हो तो उस इस्त्री को ऋतु-काल के बाद नहा-धोकर मृगछाला पर पवित्र मन से बैठ कर मन मे संतान प्राप्ति का संकल्प करना चाहिए l फिर न्रिम मन्त्र को 108 बार पड़कर रात मे पति से संभोग करने से इस्त्री को गर्भ धारण होता है l ॐ ह्रीं उलजाल्ये ठ ठ ॐ ह्रीं l ॐ नम : सिधि रुपाए अमुकी सपुष्य कुरु कुरु सवाहा l इस मन्त्र को प्रयोग करने से पूर्व दस हजार बार जप कर सिद्ध कर लेना चाहिए l तत्पश्चात प्रयोग के समय शंखाहुली स्वरस सवा तोले की मात्रा मे लेकर उपरोक्त मन्त्र से 108 बार अभिमंत्रित कर बंध्या इस्त्री को पिलाना चाहिए l इस प्रकार अभिमंत्रित किये हुए शंखपुष्पी के ताजे स्वरस को नियम से प्रतिदिन एक सप्ताह तक पिलाना चाहिए और आठवे दिन इस्त्री सहवास करे तो गर्भ धारण करने की पूरी-पूरी संभावना रहती है l और संतान स्वस्थ रहती है l जब स्वरस को अभिमंत्रित कर जिस इस्त्री को पिलाना हो तो मन्त्र मे आये “अमुक ” शब्द के स्थान पर उस इस्त्री का नाम लेना चाहिए तथा इस स्वरस के सेवन क्रम मे इस्त्री को सदा ही सात्विक व सादा भोजन करना चाहिए तथा वस्त्र तन- मन से पवित्र रहकर सन्तान प्राप्ति हेतु इश्देव के ध्यान मे लीन रहना चाहिए l —————————————————— केसे हो मनपसन्द संतान की प्राप्ति..?? किस व्यक्ति के कैसी सन्तान होगी,इसका पता भी लगाया जा सकता है,जन्म कुन्डली में चलित नवमांश कारकांश के द्वारा जन्म योग है,या नहीं इसका पता लगाना तो असंभव तो नही परन्तु कठिन अवश्य है। संतान सुख का विचार करने के लिए त्रिकोण 1,5,9वें स्थान द्वितीय स्थान एकादश स्थान (2,11) से सन्तान सम्बन्धी विचार करना चाहिए। जन्म कुन्डली का पहला भाव और इसके प्रभाव —- देह भवन यानी शरीर स्थान यह सन्तान के वास्ते महत्वपूर्ण साधन है,जिससे प्रथम देह स्थान का बल होना देखना चाहिये। उसके बाद द्वितीय स्थान जहां कुटुम्ब वृद्धि या वंश वृद्धि का विचार करना चाहिये,उसके बाद पंचम स्थान से संतान सुख का विचार किया जाता है,पांचवें स्थान स पांचवे यानी नवम स्थान को भाग्य स्थान भी इसके लिये महत्वपूर्ण माना जाता है,फिऱ ग्यारहवां भाव जहां से किसी भी वस्तु की प्राप्ति होती है को देखना चाहिये। इसके साथ ही पुत्र कारक गुरु का भी विचार करना चाहिए। सप्तांश,नवमांश कारकांश यह कुन्डली में जन्म के इन पांचों स्थानों के स्वामी की क्या परिस्थिति है,उसका ध्यान होने के बाद सन्तान सम्बन्धी जातक को योग्य मार्गदर्शन देना चाहिये। जानिए ग्रह का प्रभाव और संतान योग —— सूर्य मंगल गुरु पुत्र के ग्रह होते है,चन्द्र स्त्री ग्रह है,बुध शुक्र शनि कुन्डली में बलवान होने पर पुत्र या पुत्री का अपने बल के अनुसार फ़ल देते है,सूर्य की सिंह राशि अल्प प्रसव राशि है,और सूर्य जब ग्यारहवें भाव रहकर पांचवें स्थान के सामने होता है,तो एक पुत्र से अधिक का योग नही बनता है,कभी कभी वंश वृद्धि में बाधा भी बनती है। परन्तु सूर्य से अधिक से अधिक एक ही पुत्र का सुख होता है,जब चन्द्र राशि कर्क उसके स्वामी के “चन्द्र कन्या प्रजावान” योग के लिये प्रसिद्ध माना जाता है,यानी चन्द्र राशि कर्क कन्या राशि की अधिकता के लिये माना जाता है। पांचवें स्थान में कर्क राशि को अगर ग्यारहवें भाव से शनि देखता हो तो जातक के सात पुत्रिया भी हो सकती है,और एक पुत्र का योग होता है,और वह पुत्र भी अल्पायु वाला कहा जाता है,लेकिन अगर कर्क राशि में जन्म नही है,तो पर्णाम उल्टा भी देखा जाता है,धनु लगन की कुन्डली में पांचवे स्थान से पुत्र सुख अधिक होता है,शनि पुत्र सुख नही देता है। जन्म कुंडली में कम सन्तान योग—— पुत्र के सुख का अभाव तब होता है जब पंचम स्थान दूषित होता है,पंचम स्थान को अगर शनि राहु मंगल अगर कोई भी ग्रह दृष्टि दे रहा है,या पंचम के मालिक बारहवें भाव में है,या पंचम और धन स्थान में अशुभ ग्रहों का जोर या युति है तो सन्तान में पुत्र सुख नही मिल पाता है या बिलम्ब होता है , लेकिन कन्या संतान अवश्य मिलती है। इस उपाय/तरीके से पायें मनचाही सन्तान प्राप्ति—— स्त्री के ऋतु चक्र के सोलह रात तक ऋतुकाल रहता है, उस समय में ही गर्भ धारण हो सकता है, उसके अन्दर पहली चार रातें निषिद्ध मानी जाती है, कारण दूषित रक्त होने के कारण कितने ही रोग संतान और माता पिता में अपने आप पनप जाते है, इसलिये शास्त्रों और विद्वानो ने इन चार रातों को त्यागने के लिये ही जोर दिया गया है। चौथी रात को ऋतुदान से कम आयु वाला पुत्र पैदा होता है, पंचम रात्रि से कम आयु वाली ह्रदय रोगी पुत्री होती है, छठी रात को वंश वृद्धि करने वाला पुत्र पैदा होता है, सातवीं रात को संतान न पैदा करने वाली पुत्री, आठवीं रात वाला पुत्र, नवीं रात को कुल में नाम करने वाली पुत्री, दसवीं रात को कुलदीपक पुत्र, ग्यारहवीं रात को अनुपम सौन्दर्य युक्त पुत्री,बारहवीं रात को अभूतपूर्व गुणों से युक्त पुत्र,तेरहवीं रात को चिन्ता देने वाली पुत्री,चौदहवीं रात को सदगुणी पुत्र,पन्द्रहवीं रात को लक्ष्मी समान पुत्री,और सोलहवीं रात को सर्वज्ञ पुत्र पैदा होता है। इसके बाद की रातों को संयोग करने से पुत्र संतान की गुंजायश नही होती है। इसके बाद स्त्री का रज अधिक गर्म हो जाता है,और पुरुष के वीर्य को जला डालता है, परिणामस्वरूप या तो गर्भपात हो जाता है, अथवा संतान पैदा होते ही खत्म हो जाती है। मेडिकल सांइस में भी गर्भाधारण के लिये ऋतु चक्र से सोलह दिन बताये गये है । यदि भूतकाल में देखे तो हमारे राजाओं , महाराजाओं के एक या दो ही संताने हुआ करती थी जो की जीवन के हर क्षेत्र में पूर्ण निपुण हुआ करती थी , क्योंकि हमारे विद्वानों ने गर्भाधारण के लिए औरत की जन्म कुंडली के अनुसार गर्भाधारण के लिए एक उचित समय का निर्धारण कर योग्य सन्तान प्राप्ति के बारे में आंकलन किया जाता है । आज के युग में भी यदि इस पर विचार करके गर्भ धारण किया जाये तो योग्य सन्तान प्राप्त की जा सकती है जिससे देश व राष्ट्र की उन्नति हो। —————————————————————————- प्रश्‍न : पुत्र प्राप्ति हेतु किस समय संभोग करें ? उत्तर : इस विषय में आयुर्वेद में लिखा है कि गर्भाधान ऋतुकाल की आठवीं, दसवी और बारहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए। जिस दिन मासिक ऋतुस्राव शुरू हो उस दिन व रात को प्रथम मानकर गिनती करना चाहिए। छठी, आठवीं आदि सम रात्रियाँ पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियाँ पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं। इस संबंध में ध्यान रखें कि इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष यानी चांदनी रात वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है, यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों। इस संबंध में अधिक जानकारी हेतु इसी इसी चैनल के होमपेज पर ‘गर्भस्थ शिशु की जानकारी’ पर क्लिक करें। प्रश्न : सहवास से विवृत्त होते ही पत्नी को तुरंत उठ जाना चाहिए या नहीं? इस विषय में आवश्यक जानकारी दें ? उत्तर : सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए। पर्याप्त विश्राम कर शरीर की उष्णता सामान्य होने के बाद कुनकुने गर्म पानी से अंगों को शुद्ध कर लें या चाहें तो स्नान भी कर सकते हैं, इसके बाद पति-पत्नी को कुनकुना मीठा दूध पीना चाहिए। प्रश्न : मेधावी पुत्र प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ? उत्तर : इसका उत्तर देना मुश्किल है, प्रश्न : संतान में सदृश्यता होने का क्या कारण होता है ? उत्तर : संतान की रूप रेखा परिवार के किसी सदस्य से मिलती-जुलती होती है, ————————————————– पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र—– विस्तार :- पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र नमो स्तु गणनाथाय सिद्धिबुद्धियुताय च । सर्वप्रदाय देवाय पुत्रवृद्धिप्रदाय च ।। गुरूदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते । गोप्याय गोपिताशेषभुवना चिदात्मने ।। विŸवमूलाय भव्याय विŸवसृष्टिकराय ते । नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ।। एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम: । प्रपन्नजनपालाय प्रणतार्तिविनाशिने ।। शरणं भव देवेश संतति सुदृढां कुरू । भवष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ।। ते सर्वे तव पूजार्थे निरता: स्युर्वरो मत: । पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्वसिद्धप्रदायकम् ।। ————————————————— मध्य प्रदेश की व्यापारिक नगरी इंदौर में एक ऐसा यशोदा मंदिर है जहां महिलाएं जन्माष्टमी के मौके पर यशोदा की गोद भरकर संतान की प्राप्ति की कामना करती हैं। इस मंदिर में भजन-पूजन के बीच गोद भराई का दौर शुरू हो गया है। महाराजबाड़े के करीब स्थित यशोदा मंदिर में स्थापित मूर्ति में माता यशोदा कृष्ण जी को गोद में लिए हुई हैं। यह मूर्ति लगभग 200 साल पहले राजस्थान से इंदौर लाई गई थी। तभी से लोगों की मान्यता है कि जन्माष्टमी के मौके पर यशोदा जी की गोद भरने से मनचाही संतान की प्राप्ति होती है। जो महिलाएं यशोदा जी की गोद भरती हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है। पुत्र प्राप्ति के लिए गेहूं के साथ नारियल और पुत्री की प्राप्ति के लिए चावल के साथ नारियल एवं सुहाग के सामान से यशोदा जी की गोद भरी जाती है। यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है। कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना के साथ यशोदा जी की गोद भरती हैं। बुधवार से यहां गोद भराई का सिलसिला शुरू हो गया है। ————————————————————— सन्तान प्रप्ति हमारे पूर्व जन्मोंपार्जित कर्मो पर है आधारित— विवाह के उपरान्त प्रत्येक माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे को जल्द से जल्द सन्तान हो जाये और वे दादा-दादी, नाना-नानी बन जाये। मगर ऐसा सभी दम्पत्तियों के साथ नहीं हो पाता है। शादी के बाद 2-3 वर्ष तक सन्तान न होने पर यह एक चिन्ता का विषय बन जाता है। भारतीय सनातन परंपरा में सन्तान होना सौभाग्यशाली होने का सूचक माना जाता है। दाम्पत्य जीवन भी तभी खुशहाल रह पाता है जब दम्पत्ति के सन्तान हो अन्यथा समाज भी हेय दृष्टि से देखता है। पुत्र सन्तान का तो हमारे समाज में विशेष महत्व माना गया है क्योंकि वह वंश वृद्धि करता है। सन्तान प्राप्ति हमारे पूर्व जन्मोपार्जित कर्मों पर आधारित है। अत: हमें नि:सन्तान दम्पत्ति की कुण्डली का अध्ययन करते वक्त किसी एक की कुण्डली का अध्ययन करने की बजाये पति-पित्न दोंनो की कुण्डली का गहन अध्ययन करने के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये। अगर पंचमेश खराब है या पितृदोष, नागदोष व नाड़ीदोष है तब उनका उपाय मन्त्र, यज्ञ, अनुष्ठान तथा दान-पुण्य से करना चाहिये। प्रस्तुत लेख में सन्तान प्राप्ति में होने वाली रूकावट के कारण व निवारण पर प्रकाश डाला गया है। सन्तान प्राप्ति योग के लिये जन्मकुण्डली का प्रथम स्थान व पंचमेश महत्वपूर्ण होता है। अगर पंचमेश बलवान हो व उसकी लग्न पर दृष्टि हो या लग्नेश के साथ युति हो तो निश्चित तौर पर दाम्पत्ति को सन्तान सुख प्राप्त होगा। यदि सन्तान के कारक गुरू ग्रह पंचम स्थान में उपनी स्वराशि धनु, मीन या उच्च राशि कर्क या नीच राशि मकर में हो तब कन्याओं का जन्म ज्यादा देखा गया है। पुत्र सन्तान हो भी जाती है तो बीमार रहती है अथवा पुत्र शोक होता है। यदि पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक या मीन राशि पर गुरू की दृष्टि या मंगल का प्रभाव होने पर पुत्र प्राप्ति होती है। यदि पंचम स्थान के दोनों ओर शुभ ग्रह हो व पंचम भाव तथा पंचमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो पुत्र के होने की संभावना ज्यादा होती है। पंचमेश के बलवान होने पर पुत्र लाभ होता है। परन्तु पंचमेश अष्टम या षष्ठ भाव में नहीं होना चाहियें। बलवान पंचम, सप्तम या लग्न में स्थित होने पर उत्तम सन्तान सुख प्राप्त होता है। बलवान गुरू व सूर्य भी पुत्र सन्तान योग का निर्माण करते हैं। पंचमेश के बलवान हाने पर, शुभ ग्रहों के द्वारा दृष्ट होने पर, शुभ ग्रहों से युत हाने पर पुत्र सन्तान योग बनता है। पंचम स्थान पर चन्द्र ग्रह हो व शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तब भी पुत्र सन्तान योग होता है। पुरूष जातक की कुण्डली में सूर्य व शुक्र बलवान हाने पर वह सन्तान उत्पन्न करने के अधिक योग्य होता है। मंगल व चन्द्रमा के बलवान हाने पर स्त्री जातक सन्तान उत्पन्न करने के योग्य होती है। सन्तान न होने के योग – पंचम स्थान या पंचमेश के साथ राहू होने पर सर्पशाप होता है। ऐसे में जातक को पुत्र नहीं होता है अथवा पुत्र नाश होता है। शुभ ग्रहों की दृष्टि हाने पर पुत्र प्राप्ति हो सकती है। यदि लग्न व त्रिकोण स्थान में शनि हो और शुभ ग्रहो द्वारा दृष्ट न हो तो पितृशाप से पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है। पंचमेश मंगल से दृष्ट हो या पंचम भाव में कर्क राशि का मंगल हो तब पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है तथा शत्रु के प्रभाव से पुत्र नाश भी होता है। पंचमेश व पंचम स्थान पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो तब देवशाप द्वारा पुत्र नाश होता है। चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह हो पंचमेश के साथ शनि हो एवं व्यय स्थान में पाप ग्रह हो तो मातृदोष कें कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। भाग्य भाव में पाप ग्रह हो व पंचमेश के साथ शनि हो तब पितृदोष से सन्तान होने में कठनाई होती है। गुरू पंचमेश व लग्नेश निर्बल हो तथा सूर्य, चन्द्रमा व नावमांश निर्बल हो तब देवशाप के प्रभाव से सन्तान हानि होती है। गुरू, शुक्र पाप युक्त हों तो ब्राह्मणशाप व सूर्य, चन्द्र के खराब या नीच के होने पर पितृशाप के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। यदि लग्नेश, पंचमेश व गुरू निर्बल हों या 6वें,8वें,12वें स्थान में हो तों भी सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। पाप ग्रह चतुर्थ स्थान में हो तो भी सन्तान प्राप्ति की राह में कठिनाई होती है। नवम भाव में पाप ग्रह हो तथा सूर्य से युक्त हो तब पिता (जिसकी कुण्डली में यह योग हो उसके पिता) के जीवन काल में पोता देखना नसीब नहीं होता है। सन्तान बाधा के उपाय——– सूर्य व चन्द्रमा साथ-साथ होने पर सन्तान प्रप्ति के लिये पितृ व पितर का पूजन करना करना चाहियें। चन्द्रमा के लिये गया (बिहार) क्षेत्र में श्राद्ध करना चाहियें व मन्दिरों में पूजा व जागरण का आयोजन करने से भी लाभ होता है। मंगल के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो तो ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा मां दुर्गा की आरधना करें। यदि बुध के कारण सन्तान प्राप्ति में बाधा आ रही हो तो भगवान विष्णु का पूजन करें तथा ब्राह्मणों को भोजन करयें। गुरू के कारण यदि सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो तो ब्राह्मणें की सेवा करें। गुरूवार को मिठाइयों से युक्त ब्राह्मणों को भोजन करायें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पुत्रदायक औषधियां भी अच्छा कार्य करती हैं। शिवलिंगी के बीज तथा पुत्र जीवी के प्रयोग से भी लाभ मिलता है। शुक्र के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो तब शुक्रवार को सफेद वस्तुओं, सुगन्धित तेल आदि दान करे तथा यक्ष की पूजा करें। ब्राह्मणों को भोजन करने कर उनका आशिर्वाद प्राप्त करें। शनि के कारण यदि सन्तान प्राप्ति में कठिनाई उत्पन्न हो रही हो तो सर्प की पूजा करें व सर्पों की दो मूर्तियों की पूजा करके दान में देनी चाहियें। सन्तान गोपाल यन्त्र के सामने पुत्र जीवी की माला के द्वारा सन्तान गोपाल मत्रं का जप करें। यदि कोई दाम्पती प्रात: स्नानादि से निवत्तृ होकर भगवान श्री राम और माता कौशल्या की शोड्शोपचार पूजा करके नियमित रूप से एक माला इस चौपाई का पाठ करे तो पुत्र प्राप्ति अवश्य होगी:—- प्रेम मगन कौशल्या, लिस दिन जात न जात। सुत सनेह बस माता, बाल चरित कर गाय। सन्तान प्राप्ति हेतु यदि दाम्पति नौं वर्ष से कम आयु वाली कन्याओं के पैर छूकर 90 दिन तक यदि आशीर्वाद प्राप्त करे तो सन्तान अवश्य प्राप्त होगी। ————————————————————————— किसी को संतान होती ही नहीं है , कोई पुत्र चाहता है तो कोई कन्या … हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है। मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा… कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा। —————————————————————————————————– गर्भ निरोध का उपाय——- यदि पति-पत्नी दोनों सन्तान नहीं चाहते या कुछ काल तक ‘गर्भनिरोध’ चाहते हैं, तो रति-क्रिया में परस्पर मुख से मुख लगाकर इस मन्त्र का उच्चारण करें—- ‘इन्द्रियेण ते रेतसा रेत आददे।’ इससे कभी गर्भ स्थापित नहीं होगा। रजस्वला स्त्री को तीन दिन तक कांसे के पात्र में खाने का भी निषेध है। अधिक शीत और उष्णता से भी बचना चाहिए। माता को अपनी सन्तान को स्तनपान कराने से भी नहीं बचना चाहिए। यह धर्म-विरुद्ध है और स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। ————————————————————————————————— भारतीय संस्कृति में इस प्रजनन यज्ञ को सर्वाधिक श्रेष्ठ यज्ञ का स्थान प्राप्त है। यहाँ ‘काम’ का अमर्यादित आवेग नहीं है। ऐसी अमर्यादित रति-क्रिया करने से पुण्यों को क्षय होना माना गया है। ऐसे लोग सुकृतहीन होकर परलोक से पतित हो जाते हैं। यशस्वी पुत्र-पुत्री के लिए प्रजनन यज्ञ-ऋतु धर्म के उपरान्त यशस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए रति-कर्म करने से पूर्व यह मन्त्र पढ़ें——– ‘इन्द्रियेण ते यशसा यश आदधामि।’ इस मन्त्र का आस्थापूर्वक मनन करने से निश्चय ही यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी। यदि पुरुष गौरवर्ण पुत्र की इच्छा रखता हो, तो उसे ऋतु धर्म के उपरान्त सम्भोग तक अपनी पत्नी को घी मिलाकर दूध-चावल की खीर खिलानी चाहिए और स्वयं भी खानी चाहिए। इससे पुत्र गौरवर्ण, विद्वान और दीर्घायु होगा। इसके अलावा दही में चावल पकाकर खाने से व जल में चावल पकाकर व घी में मिलाकर खाने से भी पुत्र-रत्न की ही प्राप्ति होगी। यदि पति-पत्नी विदुषी कन्या की कामना करते हों, तो तिल के चावल की खिचड़ी बनाकर खानी चाहिए

सोमवार, 28 मई 2018

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गणपति जी की चमत्कारिक आरती

हे गणपति तेरी आरती गाऊँ
               सिद्ध विनायक तेरी आरती गाऊँ।
1】विघ्न विनायक रूप तुम्हारो
               हमरे गणपति कष्ट निवारो ।
    प्यारी छवि तेरी मन में बसाऊँ
              है गणपति तेरी आरती गाऊँ।।
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2】मोदक प्रिय है भोग तुम्हारो
                   दूर्वा करती कुल उजियारो।
        एकदंत रूप में ह्रदय में बसाऊँ
                 है गणपति  तेरी आरती गाऊँ।।
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3】प्रथम् पूज्य हो आके विराजो
               हमरे गणपति काज सवारो।
      तेरे चरणों में विनती सुनाऊँ
             है गणपति तेरी आरती गाऊँ।।
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4】शिवजी के हो तुम प्राणपियारे
              माँ गौरा के अखियन के तारे ।
       तुमरी शरण में बार बार आऊँ
              है गणपति तेरी आरती गाऊँ।।
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       गड़पति जी की सिद्ध आरती
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जय गौरी नन्दा देवा जय गौरी नंदा
    गणपति आनंद कन्दा मै चरनन बन्दा ।
1】सूँड़ सूडालो नयन विसालो
                         कुंडल झल कन्दा।।
   कुम कुम केसर चन्दन
                       सिंदूर बद नंदा।।
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2】  मुकुट सुघड़ शोभन्ता
                           मस्तक शोभन्ता।
       बहिया बाजू बन्दा
                    पहुंचे गिरिखन्दा।।
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3】   रतन जड़ित सिंहासन
                           शोभत आनंदा।
        गल मूतियन की माला
                      सुर नर मुनि बन्दा ।।
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4】   मूसक बाहन राजत
                     शिव सुत आनंदा।
          भजत शिवानंद स्वामी
                           मेटत भव फन्दा।।
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भागवत कथा पूजन सामग्री

भागवत कथा के लिए आवश्यक पूजन सामग्री

पूजन सामग्री लिस्ट सभी प्रकार की जटिल समस्याओ के समाधान हेतु   शीघ्र सम्पर्क करे
एबम  अपनी कुंडली दिखाकर  उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करे । 
================================= 1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम 
२】कलावा(आंटी)-------------100 ग्राम 
३】अगरबत्ती-------------------     3पैकिट 
४】कपूर-------------------------   50 ग्राम 
५】केसर-------------------------   1डिव्वि 
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत -----------------   21नग्
८】चावल------------------------ 07 किलो  (1किलो साबुत )
९】अबीर-------------------------50 ग्राम 
१०】गुलाल, -----------------10 0ग्राम
११】अभ्रक-------------------
१२】सिंदूर --------------------100 ग्राम 
१३】रोली, --------------------100ग्राम 
१४】सुपारी, ( बड़ी)--------  200 ग्राम 
१५】नारियल -----------------  11 नग् 
१६】सरसो----------------------50 ग्राम 
१७】पंच मेवा------------------100 ग्राम 
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम 
१९】शकर-----------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)------------  01किलो 
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम 
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम 
२३】इत्र की शीशी----------------1 नग् 
२४】रंग लाल----------------------10ग्राम 
२५】रंग काला --------------------10ग्राम 
२६】रंग हरा -----------------------10ग्राम 
२७】रंग पिला ---------------------10ग्राम 
२८】चंदन मूठा--------------------1 नग् 
२९】धुप बत्ती ---------------------2 पैकिट
      पंचमेवा अलग अलग कुल 200 ग्राम
============================= 
३०】सप्तमृत्तिका
1】 हाथी के स्थान की मिट्टि-----------50ग्राम
२】घोड़ा बांदने के स्थान की मिटटी--50ग्राम
३】बॉबी की मिटटी---------------------50ग्राम 
४】दीमक की मिटटी-------------------50ग्राम
५】नदी संगम की मिटटी---------------50ग्राम 
६】तालाब की मिटटी-------------------50ग्राम
७】गौ शाला की मिटटी-----------------50ग्राम राज द्वार की मिटटी-----------------------50ग्राम ============================ 
३१】पंचगव्य 
१】 गाय का गोबर -----------------50 ग्राम 
२】गौ मूत्र-----------------------------50ग्राम 
३】गौ घृत------------------------------50ग्राम 
4】गाय दूध----------------------------50ग्राम 
५】गाय का दही ---------------------50ग्राम ============================= 
३२】सप्त धान्य-कुलबजन--------100ग्राम
१】 जौ----------- 
२】गेहूँ- 
३】चावल- 
४】तिल- 
५】काँगनी-
६】उड़द- 
७】मूँग =============================
३३】कुशा 
३४】दूर्वा 
35】पुष्प कई प्रकार के 
३६】गंगाजल
३७】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो 
38】पंच पल्लव 
१】बड़, 
२】 गूलर, 
३】पीपल, 
४】आम 
५】पाकर के पत्ते)
6)सात गांठ का बॉस 1 नग
============================= 
३९】बिल्वपत्र 
४०】शमीपत्र
४१】सर्वऔषधि 
४२】अर्पित करने हेतु पुरुष बस्त्र 
४३】मता जी को अर्पित करने हेतु  सौ भाग्यवस्त्र 44】जल कलश तांबे का मिट्टी का) 
४५】      बस्त्र
१】सफेद कपड़ा दोमीटर) 
२】लाल कपड़ा (2मीटर) 
३】काला कपड़ा 2मीटर)
४】हरा कपड़ा 2मीटर) 
5)पीला कपड़ा  2 मीटर)
    पोथी के लिए  छींट कपड़ा
४६】
पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार) 
४७】दीपक 
४८】तुलसी दल 
४८】केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हों तो खंभे सहित) 49】बन्दनवार 
50】पान के पत्ते ------------11 नग
51】रुई 
५२】भस्म 
53】ध्वजालाल-1
         पचरंगा -1 
सभी देवताओं के झन्डे
54】प्रसाद(अनुमानि)
============================
55】    ब्राहम्णो  के   लिए  उनके लिए नित्य उपयोगी सामान ================================= सावुन नहाने के---------------10 
सावुन कपड़े धोने के --------10 
सर्फ कपडे धोने का ---------1 किलो
मंजन -------------------------100ग्राम
तेल ----------------------------100ग्राम
-------------------------------------------------------------
56】========ब्राह्मण बरण सामग्री=======
1】धोती २】दुपट्टा ३】आंगोछा ४】आसन ५】माला ६】गौमुखी ७】लोटा ८】पंचपात्र ९】चमची १०】तष्टा ११】अर्घा १२】 डाभ अंगूठी =============================
५७】=========नवग्रह समिधा=======
१】आक २】 छोला ३】खैर ४】आंधी झाड़ा ५】पीपल ६】उमर(गूलर) ७】शमी ८】दूर्वा ९】कुशा
============================
पूजा के लि ये कलश
1)बड़ा कलश पीतल का 
4)कलश ताँबे के 
2 )कलश स्टील के
1)थाली
11)छोटी कटोरी
     मिट्टी के कलश  अनुमानित
      अनुमानित नरियल
××××××××××××××××××××××××××××××
संपर्क -किसी भी प्रकार की पूजा जैसे - सतचण्डीपाठ ,नवरात्रिपाठ  ,महामृत्यंजय , वास्तु पूजन, ग्रह प्रवेश  ,श्री मदभागवत कथा, श्री राम कथा , करवाने हेतु एबम ज्योतिष द्वारा समाधान,आदि की  जानकारी के लिए ×××××××××××××××××××××××××××××× 
सम्पर्क :- पण्डाजी जितेंन्द्र अवस्थी
                  9993834961
            पण्डाजी नरेन्द्र अवस्थी

2018 के ग्रहण


 2018 में पाँच ग्रहण घटित होंगे जिनमें 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण हैं।

साल 2018 में पाँच ग्रहण घटित होंगे 
जिनमें 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण हैं।
इस साल होने वाले दोनों चंद्र ग्रहण पूर्ण होंगे जिनकी दृश्यता भारत सहित विश्व के अन्य देशों में होगी।
वहीं तीनों सूर्य ग्रहण आंशिक होंगे जो भारत में नहीं दिखाई देंगे, 
हालाँकि विश्व के अन्य देशों में इन्हें देखा जा सकेगा।
साल का पहला चंद्र ग्रहण 31 जनवरी 2018 में होगा
जिसका सूतक काल का समय प्रता 8:21मिनिट से प्रारंभ होगा 
ग्रहण स्पर्श काल :शाम  5:21मिनिट पर होगा 
ग्रहण का मध्य काल  शाम 7:03 से 8:45 मिनिट पर मोक्ष
पर्वकाल अवधि  :3घंटे 24 मिनिट होगा 
पर्वकाल समय :शाम 5 :21मिनिट से रात्रि 8:45मिनिट तक 
किन किन राशियों को हानिकारक 
मेष
सिंह 
कर्क 
धनु 
किन किन राशियों को अशुभ 
बृषभ 
कन्या 
तुला 
कुम्भ 
किन किन राशियों को सामान्य 
मिठुन
बृश्चिक 
मकर
मीन
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जबकि दूसरा चंद्र ग्रहण 27-28 जुलाई 2018 में घटित होगा।
चंद्र ग्रहण 2018 भारत में दिखाई देने के कारण यहाँ पर ग्रहण का सूतक काल मान्य होगा।
वहीं 2018 में पहला सूर्य ग्रहण 16 फरवरी 2018 में होगा
और दूसरा 13 जुलाई 2018 को दिखाई देगा।
जबकि तीसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण 11 अगस्त 2018 में दृश्य होगा।
भारत में सूर्य ग्रहण के नहीं दिखाई देने के कारण यहाँ ग्रहण का सूतक काल शून्य रहेगा।
ग्रहण खगोलीय विज्ञान एवं ज्योतिश शास्त्र के लिए एक महत्वपूर्ण घटना होती है इसलिए ग्रहण पर वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय समाज अपनी दृष्टि जमाए रहता है।
इसका प्रभाव आम लोगों के जीवन पर भी पड़ता है। ग्रहण के दौरान कई कार्यों को वर्जित माना गया है
इसलिए ग्रहण के बारे में हमें विस्तार से जानना आवश्यक है।
2018 में सूर्य ग्रहण वर्ष 2018 में 3 सूर्य ग्रहण घटित होंगे,
हालांकि ये तीनों ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देंगे।
इसलिए भारत में इनका धार्मिक सूतक मान्य नहीं होगा।
:1. ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्‍याग करना,
सोना, केश विन्‍यास करना, रति क्रीडा करना, मंजन करना, वस्‍त्र नीचोड़्ना,
ताला खोलना, वर्जित किए गये हैं ।
2. ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है, लघुशंका करने से घर में दरिद्रता आती
है, मल त्यागने से पेट में कृमि रोग पकड़ता है, स्त्री प्रसंग करने से सूअर की
योनि मिलती है और मालिश या उबटन किया तो व्यक्ति कुष्‍ठ रोगी होता है।
क्या नही करना चाहिए
3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला
मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास
करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और
दंतहीन होता है।
4. सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में तीन प्रहर
पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर = 3 घंटे) । बूढ़े, बालक और रोगी एकप्रहर पूर्व खा सकते हैं ।
5. ग्रहण के दिन पत्‍ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए
6. 'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो
का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है ।
7. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
मंत्र सिद्धि करे
चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है।
श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी ले।
ऐसा करने से वह मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर लेता है।
देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। 
फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है 
फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। 
अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। 
बूढ़े, बालकक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। 
ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए। 
ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते।
जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।
ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। 
स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं। 
ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।
गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। 
भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना 
और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगा जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है। 
ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती
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ग्रहणकाल के समय कई कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है जिसमें से एक है गर्भवती स्त्रियों द्वारा चन्द्र ग्रहण को देखना| 
उन्होंने बताया है कि जिस वक्त चन्द्र ग्रहण पड़ रहा हो उस समय गर्भवती स्त्रियों को घर के बाहर नहीं निकलना चाहिए 
क्योंकि ग्रहण के समय जो किरणें चन्द्रमा से निकलती है वह गर्भवती स्त्रियों और गर्भ में पल रहे शिशु के लिए बहुत अधिक खतरनाक साबित हो सकती हैं।
यह भी बताते हैं कि चन्द्र ग्रहण के समय वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय रहती है जो कि कमजोर लोगों पर बुरा प्रभाव डालती है। 
गर्भावस्था के दौरान स्त्री का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है।
ऐसे में इन बुरे प्रभावों से बचने के लिए स्त्रियों का घर में ही रहना जरूरी है।
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सामान्यत: ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के समय किसी भी गर्भवती महिला को अकेले घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।
पुराने समय में इस बात का सख्ती से पालन कराया जाता था और ग्रहण के समय खासतौर पर महिलाओं को घर से बाहर निकलने से मना किया जाता था।
ग्रहण के समय नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं जो कि गर्भवती स्त्री को बहुत ही जल्द अपने प्रभाव में ले लेती हैं। 
जिससे गर्भ में पल रहे शिशु पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। 
यहां नकारात्मक शक्ति से अभिप्राय है कि आसुरी प्रवृत्तियां। 
ग्रहण के समय में बुरी शक्तियां अपने पूरे बल में होती हैं। 
यह शक्तियां को लड़कियां से बहुत ही जल्द प्रभावित होती हैं। 
जिससे वे उन्हें अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करती हैं। 
इन शक्तियों के प्रभाव में आने के बाद गर्भवती स्त्री का मानसिक स्तर व्यवस्थित नहीं रह पाता और उनके पागल होने का खतरा बढ़ जाता है।
विज्ञान के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्र न दिखाई देने के कारण हमारे शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है।
हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी है जिसे चंद्रमा सीधे-सीधे प्रभावित करता है।
ज्योतिष में चंद्र को मन का देवता माना गया है। ग्रहण के समय चंद्र दिखाई नहीं ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। गर्भवती स्त्रियां उस समय में बेहद संवेदनशील और कोमल हो जाती हैं।
छोटी-छोटी बातों का भी उन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब चंद्र नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर के पानी में हलचल अधिक बढ़ जाती है। 
जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है। 
इन्हीं कारणों से ग्रहण काल में गर्भवती स्त्रियों को अकेले बाहर जाने के लिए मना किया जाता था। 
चंद्रमा हमारे शरीर के जल को किस प्रकार प्रभावित करता है इस बात का प्रमाण है समुद्र का ज्वारभाटा।
पूर्णिमा और अमावस के दिन ही समुद्र में सबसे अधिक हलचल दिखाई देती है क्योंकि चंद्रमा पानी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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गर्भवती स्त्री को सूर्य – चन्‍द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्‍योकि उसके
दुष्‍प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावनाबढ़ जाती है ।
इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा
दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न करें।
ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने को मना कियाजाता है,
और किसी वस्‍त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है ।
क्‍योंकि ऐसी मान्‍यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल
(जुड़) जाते हैं ।
1. ग्रहण के समय “ ॐ ह्रीं नमः” मंत्र का 10 माला जप करें इससे ये मंत्र्
सिध्‍द हो जाता है । 
फिर अगर किसी का स्‍वभाव बिगड़ा हुआ है, बात नहीं मान रहा है, इत्‍यादि ।  
तो उसके लिए हम
संकल्‍प करके इस मंत्र् का उपयोग कर सकते हैं ।
2. ग्रहण के समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो
नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहण शुद्ध होने पर उस घृत को
पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त
कर लेता है।
1. ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्‍याग करना,
सोना, केश विन्‍यास करना, रति क्रीडा करना, मंजन करना, वस्‍त्र नीचोड़्ना,
ताला खोलना, वर्जित किए गये हैं ।
2. ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है, लघुशंका करने से घर में दरिद्रता आती
है, मल त्यागने से पेट में कृमि रोग पकड़ता है, स्त्री प्रसंग करने से सूअर की
योनि मिलती है और मालिश या उबटन किया तो व्यक्ति कुष्‍ठ रोगी होता है।
3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला
मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास
करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और
दंतहीन होता है।
4. सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में तीन प्रहर
पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर = 3 घंटे) । बूढ़े, बालक और रोगी एक
प्रहर पूर्व खा सकते हैं ।
5. ग्रहण के दिन पत्‍ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए
6. 'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो
का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है ।
7. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
0
1. ग्रहण लगने से पूर्व स्‍नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए ।
2. भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- चन्द्रग्रहण में किया गया
पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना
फलदायी होता है।
यदि गंगा जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस
करोड़ गुना फलदायी होता है।
3. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से
मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
4. ग्रहण समाप्‍त हो जाने पर स्‍नान करके ब्राम्‍हण को दान करने का विधान है
5. ग्रहण के बाद पुराना पानी, अन्‍न नष्‍ट कर नया भोजन पकाया जाता है, और ताजा
भरकर पीया जाता है।
6. ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब
देखकर भोजन करना चाहिए।
7. ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो
देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।
8. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्‍न, जरूरत मंदों को वस्‍त्र् दान
देने से अनेक गुना पुण्‍य प्राप्‍त होता है।

       पण्डाजी जितेंन्द्र अवस्थी बुढाडोंगर
                  9993834961

पंचक विचार

जितेंन्द्र अवस्थी
9993834961

पंचक का अर्थ है - पांच, पंचक चन्द्रमा की स्थिति पर आधारित गणना हैं। गोचर में चन्द्रमा जब कुम्भ राशि से मीन राशि तक रहता है तब इसे पंचक कहा जाता है, इस दौरान चंद्रमा पाँच नक्षत्रों में से गुजरता है। ऎसे भी कह सकते हैं कि धनिष्ठा नक्षत्र का उत्तरार्ध, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र ये पाँच नक्षत्र पंचक कहलाते है। बहुत से विद्वान धनिष्ठा नक्षत्र का पूरा भाग पंचक में मानते हैं तो कुछ आधा भाग मानते हैं। पंचक के समय में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है. इस समय में किया गया कार्य पाँच गुना बढ़ जाता है।

पंचक कितने शुभ ओर अशुभ
पंचक अर्थात (पांच नक्षत्रों का समूह) यह एक ऐसा(ज्योतिष) का विशेष मुहूर्त दोष है जिसमें बहुत सारे कामों को करने की मनाही की जाती क्या यह वाकई हानिकारक होता है या फिर यह एक भ्रांति है। क्या पंचक के केवल उसके नाकारात्मक प्रभाव ही मिलते है या उसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार राशिचक्र में 360 अंश एवं 27 नक्षत्र होते हैं। इस प्रकार एक नक्षत्र का मान 13 अंश एवं 20 कला या 800 कला का होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब चन्द्रमा 27 नक्षत्रों में से अंतिम पांच नक्षत्रों अर्थात धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, एवं रेवती में होता है तो उस अवधि को पंचक कहा जाता है
पंचक के दौरान मुख्य रूप से इन पांच कामों को वर्जित किया गया है-
1-घनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी आदि ईंधन इकट्ठा नही करना चाहिए इससे अग्नि का भय रहता है।
2-दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
3-रेवती नक्षत्र में घर की छत डालना धन हानि और क्लेश कराने वाला होता है।
4-पंचक के दौरान चारपाई नही बनवाना चाहिए।
5-पंचक के दौरान किसी शव का अंतिम संस्कार करने की मनाही की गई है क्योकि ऐसा माना जाता है कि पंचक में शव का अन्तिम संस्कार करने से उस कुटुंब या गांव में पांच लोगों की मृत्यु हो सकती है। अत: शांतिकर्म कराने के पश्चात ही अंतिम संस्कार करने की सलाह दी गई है।
नक्षत्रों का प्रभाव
– धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
– शतभिषा नक्षत्र में कलह होने के योग बनते हैं।
– पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र होता है।
– उतराभाद्रपद में धन के रूप में दण्ड होता है।
– रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना होती है।

दिशाशूल विचार

कर्मकाण्ड भक्ति सागर

 दिशाशूल के ऊपर एक पुरानी कहावत है।....
सोम शनीचर पूरब न चालू। मंगल बुध उत्तर दिश कालू।
रवि शुक्र जो पश्चिम जाय। हानि होय पथ सुख नहीं पाए।
बीफे दक्खिन करे पयाना। फिर नहिं समझो ताको आना  
  • सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा की ओर यात्रा नहीं करनी चाहिए।
  • मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा की ओर यात्रा नहीं करनी चाहिए।
  • रविवार और शुक्रवार को पश्चिम दिशा दिशा की ओर यात्रा नहीं करनी चाहिए।
  • वीरवार या बृहस्पति को दक्षिण दिशा की और यात्रा करना बहुत ही खतरनाक होता है।

दिशाशूल नक्षत्र और योगिनी वास चक्र

पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाओं को सब जानते हैं। लेकिन इनके बीच की अन्य चार दिशाएं सबको याद नहीं रहती। इसलिए आठों दिशाओं तथा उनके नक्षत्र -शूल, दिशाशूल और योगिनी वास को तुरंत अच्छी तरह से समझने के लिए नीचे हम चक्र दिशाशूल नक्षत्र और योगिनी वास चक्र दे रहे हैं।
दिशाशूल विचार यात्रा करने से पहले इन चीजों को नहीं करना चाहिए
  • इसमें प्रत्येक दिशा के नीचे पहले नक्षत्र का नाम है। फिर वार तथा वारों के अंत में वह तिथियां दी हुई हैं।
  • जिन तिथियों को उस दिशा में योगिनी का वास होता है।
  • उन तिथियों को उस दिशा में जाने से स्वभावत: यात्री के सम्मुख पड़ती है। दाहिने की योगिनी अशुभ होती है।
  • इसलिए जिन तारीखों की योगिनी सम्मुख और दाहिने पड़े उन विधियों को तथा उस दिशा के नीचे जो नक्षत्र और वार लिखे हैं। और नक्षत्र तथा वारो में उस दिशा की ओर यात्रा नहीं करनी चाहिए।
  • समय शूल उषा काल में पूर्व की, गोधूलि में पश्चिम की, अर्ध रात्रि में उत्तर की, मध्यान काल में दक्षिण को नहीं जाना चाहिए।

दक्षिण यात्रा का निषेध

कुंभ और मीन के चंद्रमा में अर्थात पंचक में कदापि न जाए।

चंद्रमा की दिशा और उसका शुभाशुभ फल:

मेष, सिंह, धनु, पूर्व, चन्दा, दक्षिण कन्या भविष्य मकरकन्दा। पश्चिम कुम्भ,तुलयां मिथुना, उत्तर कर्क वृचशक,मीना। अर्थात मेष, सिंह और धनु राशि का चंद्रमा को पूर्व में, वृष कन्या और मकर राशि का दक्षिण में, मिथुन तुला और कुंभ का पश्चिम में, कर्क वृचशक, मीन का चंद्रमा उत्तर में रहता है। यात्रा में चंद्रमा समूह या दाहिने शुभ होता है। और पीछे होने से मृत्यु और बायीं ओर होने से हानि होती है।

यात्रा के शुभ आशुभ लग्न:

कुंभ महाकुंभ के नवांश में यात्रा कदापि न करें। शुभ लगन वह हैं, जिसमें 1,4,5,7,9, 10, स्थानों में शुभ ग्रह और 6, 3, 10, 11 में पापग्रह हो ,अशुभ लग्न वह है, जिसमें 1,6,,8,12 वे चन्द्रमा 10वे में शनि,7वे में शुक्र, 7,12,6,8वे में लग्नेश हो।

यात्रा विधान :

किन्हीं कारणों से यात्रा के मुहूर्त में ना जा सके तो, उसी मुहूर्त में और ब्राह्मण को जनेऊ-माला, क्षत्रिय को शस्त्र, वैश्य को शहद, घी, शुद्र को फल को अपने वस्त्र में बांध कर किसी के घर या नगर से बाहर जाने की दिशा में प्रस्थान रखे। ऊपर लिखी सभी चीजों के बजाय मन की सबसे प्यारी वस्तु को भी प्रस्थान में रखा जा सकता है।

यात्रा करने से पहले इन चीजों को नहीं करना चाहिए:

यात्रा से पहले त्यागने योग्य वस्तुए: यात्रा पर जाते समय जरूर रखें ध्यान यात्रा करने से पहले इन वस्तुओं को का उपयोग नहीं करना चाहिए:
  1. यात्रा करने के 3 दिन पहले दूध नहीं पीना चाहिए।
  2. यात्रा करने के 5 दिन पहले से हजामत नहीं बनानी चाहिए।
  3. 3 दिन पहले तेल से नहीं लगाना चाहिए।
  4. 7 दिन पहले से मैथुन नहीं करना चाहिए।
यदि इतना ना हो सके तो कम से कम 1 दिन पहले तो ऊपर लिखी, सभी वस्तुओं को जरूर छोड़ देना चाहिए।

यात्रा करने से पहले इन वस्तुओं का जरूर उपयोग करना चाहिए।

रवि को पान, सोम को दर्पण, मंगल गुड़ करिए अर्पण ।
बुद्ध को धनिया, बिफै जीरा, शुक्र कहे मोहे दधि का पीरा।
कहे सनी में अदरख पावा ,सुख संपति निश्चय घर लावा।
  1. रविवार को पान खाकर यात्रा करनी चाहिए।
  2. सोमवार को शीशे में मुंह देखकर यात्रा करनी चाहिए।
  3. मंगलवार को गुड़ खाकर यात्रा करनी चाहिए।
  4. बुधवार को धनिया खाकर के यात्रा करनी चाहिए।
  5. गुरुवार को जीरा खाना चाहिए।
  6. शुक्रवार को दही खाकर यात्रा करनी चाहिए और शनिवार को अदरख खा कर के यात्रा करने से सभी कार्य सफल होते हैं।
                                   पण्डित जितेंन्द्र अवस्थी
                                     9993834961